Saturday 24 March 2012

पंचकर्म चिकित्सा



आयुर्वेद शास्त्र में शरीर को तीन दोषों से निर्मित बताया है 1. वात, 2. पित्त और 3. कफ। 
तीनों दोष जब सम मात्रा में होते हैं तो शरीर स्वस्थ रहता है तथा जब वे दोष असमान मात्रा में होते हैं तो व्याघि उत्पन्न करते हैं। इनकी असमानता इनके बढ़ने या घटने पर उत्पन्न होती है अत: जब ये दोष शरीर में बढ़ते या घटते हैं तो शरीर में व्याघि उत्पन्न करते हैं। इन विषम हुए दोषों को सम बनाना ही आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का उद्देश्य है। 
इस प्रकार आयुर्वेद में दोषों को सम करने हेतु दो व्यवस्थाएं बताई हैं - 1. शोघन 2. शमन। 
1. शोघन के अंतर्गत वृद्ध दोषों को शरीर से बाहर निकाला जाता है जो कि एक विशेष पद्धति से संपन्न होता है जिसे पंचकर्म कहते हैं। 
2. शमन चिकित्सा में विषम दोषों का विभिन्न औषघियों द्वारा शमन करते हैं। शोघन चिकित्सा को आचार्य श्रेष्ठ मानते हैं। अघिक बढे़ हुए दोषों में शोघन चिकित्सा के द्वारा व्याघि का समूल नाश किया जाता है। 
पंचकर्म : यह पद्धति नामत: सिद्ध पांच कर्मो से मिलकर बनी है - 1. नस्य, 2. वमन, 3. विरेचन, 4. अनुवासन बस्ति और 5. आस्थापन बस्ति। (आचार्य चरक के अनुसार) 
1. नस्य : ऊर्ध्व जत्रुगत रोगों की चिकित्सा है। जिसके माघ्यम से नाक, आँख और मस्तिष्क संबंघी विकारों पर नियंत्रण होता है। 
2. वमन : आमाशय में उत्पन्न अर्थात् कफ व पित्त दोषों से उत्पन्न व्याघियों की चिकित्सा है। इसके द्वारा पेट संबंघी और विशेषत: आहार ऩाडी संबंघी विकारों का शोघन होता है। 
3. विरेचन : पक्वाशय स्थित अर्थात् पित्त दोष से उत्पन्न व्याघियों की चिकित्सा है। 
4. बस्ति : मलाशय व अघोभाग अर्थात् वात दोष से उत्पन्न व्याघियों की चिकित्सा है। इसके दो प्रकार है - अनुवासन बस्ति और आस्थापन बस्ति। 
शरीर में दोषों की स्थिति काल के प्रभाव से बदलती रहती है अर्थात् ऋतुओं के अनुसार दोष घटते-बढ़ते रहते हैं तथा प्रतिदिन भी दोषों की स्थिति दिन व रात्रि के अनुसार परिवर्तनशील है। 
काल के प्रभाव से परिवर्तनशील दोषों में पंचकर्म का महत्व 
वसन्त ऋतु : शिशिर ऋतु में संचित श्लेष्मा (कफ) सूर्य की किरणों से पिघलकर, अग्नि को नष्ट करता हुआ बहुत से रोगों को उत्पन्न कर देता है अर्थात् शरीर में स्थित द्रव्य की समुचित कार्यप्रणाली अवरूद्ध होती है अत: इस ऋतु में तीक्ष्ण वमन, तीक्ष्ण गण्डूष तथा तीक्ष्ण नस्य का प्रयोग करना चाहिए। 
वर्षा ऋतु : गत आदानकाल के प्रभाव से शरीर, दुर्बल एवं जठराग्नि मन्द होती है तथा पुन: वृष्टि हो जाने से वातादि के प्रभाव से जठराग्नि और भी मन्द हो जाती है अत: इस ऋतु में पंचकर्म की वमन व विरेचन क्रिया से शरीर का संशोघन करके बस्ति कर्म का सेवन करना चाहिए। 
शरद् ऋतु : वर्षा एवं शीत का अनुभव करने वाले अंगों में सूर्य की किरणों से तपने पर जो पित्त, वर्षा एवं शीत से वंचित था वह अब कुपित हो जाता है अत: इस ऋतु में तिक्त द्रव्यों से सिद्ध घृत का सेवन व विरेचन प्रशस्त है। 
इस प्रकार वर्षपर्यन्त तीन ऋतुएं - वसन्त, वर्षा व शरद, पंचकर्म की दृष्टि से उपयुक्त हैं। चूंकि इस समय शरीर में दोषों की स्थिति काल के प्रभाव से विषम हो जाती है और पंचकर्म सेवन का यह श्रेष्ठ समय होता है। 
आयुर्वेद शास्त्र प्राचीन ऋषि-मुनियों के गूढ़ चिंतन की देन है। उन्हें ज्ञात था कि मनुष्य के शरीर पर ग्रहों, राशियों व ऋतुओं का प्रभाव सदैव प़डता है। मनुष्य ही क्या बल्कि संपूर्ण जगत पर इन ग्रह-नक्षत्रों एवं काल का प्रभाव प़डता है। यही कारण था कि प्राचीन आचार्यो ने एक नियत व्यवस्था जनमानस के लिए बताई, जिसे वे ऋतुचर्या कहते थे क्योंकि ऋतुओं का परिवर्तन भी काल व ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। 
सूर्य की स्थिति परिवर्तन का वातावरण पर प्रभाव ऋतु चक्र के रूप में आता है तथा मनुष्य शरीर में दोषों की स्थिति में परिवर्तन होता है। सूर्य में उष्णता का गुण होता है जो आयुर्वेद के अनुसार पित्त व वात दोष को तथा तेजस्व महाभूत को बढ़ाने वाला होता है जिसके कारण शरीर में इन दोषों में वृद्धि होती है और जब सूर्य का प्रभाव कम होता है तो चंद्रमा का प्रभाव बढ़ता है जो कि शीतलता के प्रतीक हैं जिनमें कफ दोष बढ़ाने की सामथ्र्य होती है अत: शीत ऋतु में कफ दोष का संचय होता है तथा जब सूर्य का प्रभाव बढ़ना शुरू होता है तब सूर्य के प्रकाश से कफ पिघलता है तो कफ का प्रकोप होता है और यह क्रिया सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के बाद अघिक होती है। वसन्त ऋतु में भी कफका प्रकोप होने से कफज व्याघियां उत्पन्न होती हैं तथा इनका शोघन, वमन द्वारा करवाया जाता है। 
इस उदाहरण से हम काल का व ग्रहों का प्रभाव शरीर पर समझ सकते हैं तथा इनके समाघान में शोघन अर्थात् पंचकर्म अघिक उपयोगी हो सकता है। इसके अतिरिक्त जब विभिन्न ग्रह नक्षत्रों पर अपनी स्थिति बदलते हैं तो ऋतुएं मिथ्या गुण प्रदर्शित करती हैं, ऎसे में भी जनमानस में महामारी उत्पन्न होती है तथा जिसका समाघान भी पंचकर्म द्वारा शरीर का शोघन करने से ही हो पाता है। इस प्रकार ग्रहों के प्रभाव का एक उदाहरण और प्रस्तुत है कि शरद ऋतु में हंसोदक को ग्रहण करने का वर्णन आया है। जिसका तात्पर्य है कि वह जल जो दिन में सूर्य की किरणों से संतप्त, रात्रि में चंद्र किरणों से शीतल तथा अगस्त्य नक्षत्र से निर्विष होता है तथा काल के प्रभाव से प` हो जाता है वह जल हंसोदक कहलाता है तथा इसका सेवन अमृत के समान होता है। 
अत: इन उदाहरणों से पंचकर्म चिकित्सा का महत्व तथा ग्रह स्थिति का शरीर पर प्रभाव व उसमें पंचकर्म की उपयोगिता सिद्ध होती है।

Friday 23 March 2012

जैन मुनि श्री मैत्री प्रभा सागर दिला रहे हैं निर्दोष पशुओं को जीने का अधिकार


मित्रों अब तो भारत देश कहने को ही भगवान् कृष्ण का देश रह गया है| जहाँ कभी गाय को माँ कहा जाता था आज उसी माँ को काट कर उसका मांस विदेशों में बेच कर पैसा कमाया जा रहा है इन लुटेरे नेताओं द्वारा|
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार के द्वारा प्रदेश में दस यांत्रिक बूचडखाने खोले जाने को स्वीकृति दी गयी है| यहाँ एक बूचडखाने में दस से पंद्रह हज़ार पशु प्रतिदिन मारे जाएंगे| अर्थात पूरे प्रदेश में एक दिन में एक से डेढ़ लाख पशु प्रतिदिन काट दिए जाएंगे| इन पशुओं में मुख्यत: गाय व भैंस शामिल हैं| अब बताइये भगवान् कृष्ण की जन्म भूमि उत्तर प्रदेश में यह हाल है तो बाकी पूरे देश में क्या होगा?
इसके विरोध में जैन मुनि श्री मैत्री प्रभा सागर पिछले तेरह दिनों से बडौत में आमरण अनशन पर बैठे हैं| उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा है किन्तु सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही| जैन मुनि का उत्तर प्रदेश से कोई लेना देना भी नहीं है| वे तो कुछ दिन पहले गुजरात से मेरठ पहुंचे तो वहां उन्हें मायावती सरकार के इस दुश्चक्र का पता चला कि सरकार प्रदेश के आठ जिलों में ये बूचडखाने खोलने जा रही है| ये बूचडखाने मेरठ, मुरादाबाद, सहारनपुर, झांसी, लखनऊ, कानपुर, अलीगढ एवं आगरा में खोले जाने हैं| जैन मुनि मेरठ में ही इसके विरोध में आन्दोलन करना चाहते थे किन्तु लोगों ने इस कार्य में उन्हें सहयोग नहीं दिया| अत: उन्होंने बडौत से अपना आन्दोलन शुरू किया| वहां उन्हें भारी जन समर्थन मिल रहा है| धीरे धीरे यह आन्दोलन पूरे प्रदेश में फ़ैल रहा है| किन्तु राज्य सरकार तो कान में तेल डाल कर सो रही है| केंद्र सरकार ने भी इस विषय में अपना मूंह बंद कर रखा है| सरकार की तरफ से कोई झुकाव न देख कर उन्होंने १० मई को मेरठ में एक ऐतिहासिक आन्दोलन किया| वहां भी उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है| किन्तु सरकार पर कोई असर नहीं हुआ|
इसका अर्थ यह निकाला जाए कि सरकार अब चाहती है कि हमारी संस्कृति व हमारी भावनाएं जाएं तेल लेने, हमारी माँ को गला काट कर मार दिया जाए और उसका मांस इनके आकाओं को बेचा जाए और हम चुप चाप बैठे तमाशा देखते रहें|
बात केवल गौ हत्या तक ही सीमित नहीं है| अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी भी प्रकार की जीव हत्या कर देना मैं गलत मानता हूँ|
आप जानते ही होंगे कि इन बूचडखानों में किस प्रकार पशुओं को तडपा तडपा कर मारा जाता है| नहीं पता है तो यह वीडियो देखें|

वीडियो के लिए सीधा लिंक यहाँ उपलब्ध है...
ऐसा भी क्या चटकारा जीभ का कि उसे मिटाने के लिए जंगली बनना पड़े? मानव को मानवता की हद में ही रहना चाहिए| निर्दोष पशुओं पर क्रूरता मानवता का गुणधर्म नहीं है| इन बेजुबान जीवों का कुछ तो दर्द हमें समझना ही होगा| ऐसा तो है नहीं कि भगवान् ने केवल मनुष्य को ही समस्त पृथ्वी पर अधिकार के सूत्र दिए हैं| जिनता अधिकार मानव का है उतना ही इन जीवों का भी है| और इनसे इनका अधिकार छीनना पकृति के नियमों के विरुद्ध जाना है|
मैं जानता हूँ कि बहुत से महानुभाव मेरे इस कथन से सहमत नहीं होंगे| कहेंगे कि यह तो एक जीवन चक्र है, उसको इसी प्रकार मरना था, यदि हम नहीं खाएंगे तो कोई और खाएगा अथवा यदि इन्हें हम नहीं खाएंगे तो इनकी संख्या धरती पर इतनी बढ़ जाएगी कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा आदि आदि|
इन सब दलीलों का कोई औचित्य नहीं है| यदि देश में गाय व भैसों की संख्या बढ़ जाए तो यह देश उन्नति के शिखर को छूने लगेगा| जितना अधिक पशुधन होगा उतनी अधिक उन्नति होगी|
एक गाय अपने पूरे जीवन में क्या नहीं देती हमें? भारतीय गाय के दूध और गोबर के लाभ तो हम सभी जानते हैं| इसके मूत्र से होने वाले लाभों से भी हम परिचित हैं| प्राय: गाय के मूत्र को एक औषधि के रूप में काम में लिया जाता है| इसके अलावा हिन्दू धार्मिक कर्मों में भी इसकी महत्ता है| किन्तु इन सबके अलावा भी गौ मूत्र काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है| कानपुर की एक गौशाला में काम करने वाले लोगों ने एक ऐसे सीएफएल बल्ब का निर्माण किया है जिसे जलाने के लिए एक विशेष बैटरी की आवश्यकता होती है| इस बैटरी को गौ मूत्र के द्वारा चार्ज किया जाता है| आधा लीटर गौ मूत्र से यह बल्ब २८ घंटों तक जलता रहता है| जो कि अपने आप में एक अद्भुत खोज है| 
इस खबर का स्त्रोत यहाँ है...
 कानपुर की ही एक गौशाला ने गाय के गोबर से गोबर गैस बनाई और उसे गाड़ियों में उपयोग में आने वाली सीएनजी (CNG- Compressed Natural Gas) की तरह काम में लिया| परिणाम आश्चर्य जनक थे| इस गैस से एक टाटा इंडिका पर इंधन पर होने वाला औसत व्यय ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर था| इतना उपयोगी पशु क्या हमें यूँही मार देना चाहिए| गाय को ऐसे ही तो माता नहीं कहते, इसके पास वह प्रेम है जो एक माँ के मन में अपने बच्चे के लिए होता है|
मान लीजिये कि गाय बूढी हो गयी और उसने दूध देना बंद कर दिया तो भी उसे कसाई को बेच देने से तो अच्छा है कि उसके मूत्र व गोबर से ही लाभ उठाया जाए| और बेशक यह लाभ गाय के मांस से होने वाली आमदनी से कहीं अधिक होगा| मरने के बाद भी यह काफी उपयोगी सिद्ध होगी| एक शोध के अनुसार गाय के मरने पर उसका चमड़ा उतारने से अच्छा है कि उसे किसी स्थाम पर भूमि में गाढ़ दिया जाए व उस भूमि पर एक आम का पेड़ लगा दिया जाए| यह पेड़ अन्य पेड़ों से अधिक तेज़ी से बढेगा व फल भी अधिक देगा|
तो अब बताइये कि उसे मार कर उसका मांस व चमड़ा बेचना अधिक लाभकारी है या उसे बचाना?
बात केवल गौ हत्या तक ही सीमित नहीं है| मनुष्य को कोई अधिकार नहीं कि वह अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी जीव की हत्या कर दे| आपका एक समय का भोजन होगा और एक जीव अपनी जान से गया| हम कोई जंगली जानवर नहीं है| समाज में रहने वाले सभ्य लोग हैं| अत: सभ्य लोगों सा आचरण भी तो करना चाहिए|
और जहाँ तक प्रश्न है इन जीव जंतुओं की संख्या बढ़ जाने का तो इसे एक उदाहरण से बताना चाहूँगा कि यह किस प्रकार गलत है|
बूचड़खाने में मारी जाने वाली मुर्गियां ऐसे ही नहीं आ जाती| इसके लिए पोल्ट्री फ़ार्म में इनकी खेती की जाती है| जी हाँ बिलकुल खेती ही की जाती है| इन्हें फसल की ही तरह अपने गोदामों में भरा जाता है| एक पिजरे में दस दस मुर्गियां ठूंस दी जाती हैं| इनका पूरा जीवन इसी प्रकार निकल जाता है| जब तक वे अंडे देती हैं तब तक तो इसी प्रकार जीवन जीती रहती हैं| बाद में एक दर्दनाक मौत को प्राप्त होती हैं| तो इनकी संख्या बढ़ने का तो कोई सवाल ही नहीं है| इनकी तो संख्या खुद इन्हें मारने वाले बढ़ा रहे हैं|
इन निर्दोष जीवों की सुरक्षा के लिए जैन मुनि श्री श्री मैत्री प्रभा सागर जी मैदान में उतर आये हैं| हमें उन्हें सहयोग देना चाहिए|
अंत में बताना चाहूँगा कि आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर मांसाहार के लिए नहीं बना है| अत: दया कीजिये इन जीवों पर और इन्हें अपना जीवन शान्ति से जीने दीजिये|

Friday 9 March 2012

आखिर कब तक चलेगा यह सब???



मित्रों शीर्षक आपको बाद में समझाऊंगा किन्तु लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ|
हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस| भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है| इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं| वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं| उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है| और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है|
श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए| अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया| दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली| किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए आदि आदि| और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते| मित्रों देखने से यह घटना साधारण सी लगती है| किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे, पुष्प भी अच्छे दिए|
तो मित्रों इस साधारण सी घटना से बोस ने यह सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए| अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं|
मित्रों जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा?
वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है|
५००-७०० वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो, खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृती नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है, तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान नहीं है आदि आदि| मित्रों अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और भारत व भारत वासियों को कोसते गए| अंग्रजों से पहले ये गालियाँ हमें फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों ने दीं| इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ| किन्तु मैकॉले की नीति कुछ अलग थी| उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत वासियों को कब तक कोसता रहेगा? कुछ ऐसी परमानेंट व्यवस्था करनी होगी कि हमेशा भारत वासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें| इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System. सारा सिस्टम उसने ऐसा रचा कि भारत वासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा गुलाम ही रहें| और उन्हें अपने धर्म संस्कृती से घृणा हो जाए| इस शिक्षा में हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारत वासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं| अब आप ही सोचे यदि भारत वासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू ऐसा क्यों नहीं करते? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गन्दी गाली यह है कि हम भारत वासी आर्य बाहर से आये थे| आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया| और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास में लगे हैं| इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने दूसरे राजा पर आक्रमण किया| इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं| और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं अच्छाइयां गायब हैं| आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता| और राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं| राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब हैं| इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है| जैसे सिकंदर की कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है| चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया गया| और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है|
इसी प्रकार अर्थशास्त्र का विषय है| आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं| भारत का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं| उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता| जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी दुनिया में कोई नहीं हुआ|
दर्शन शास्त्र में भी हमें भुला दिया गया| आज भी बड़े बड़े दर्शन शास्त्री अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़ रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है| अरस्तु और सुकरात का तो ये कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है| आपको पता होगा १९५० तक अमरीका और यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था| आज से २०-२२ साल पहले तक अमरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था| साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती थी| इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं| जबकि भारत में नारी को सम्मान का दर्जा दिया गया| हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को श्रीमति कहते हैं| कितना सुन्दर शब्द है ये श्रीमती जिसमे दो देवियों का निवास है| श्री होती है लक्ष्मी और मति यानी बुद्धि अर्थात सरस्वती| हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं| किन्तु फिर भी हमारे प्राचीन आचार्य दर्शन शास्त्र से गायब हैं| हमारा दर्शन तो यह कहता है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है|

चिकत्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, शुषुक, धन्वन्तरी, शारंगधर, पातंजलि सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टर के नाम हमें रटाये जाते हैं| आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है वह आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौनसे पायदान पर आता है?
बच्चों को स्कूल में गणित में घटाना सिखाते समय जो प्रश्न दिया जाता है वह कुछ इस प्रकार होता है-
पापा ने तुम्हे दस रुपये दिए, जिसमे से पांच रुपये की तुमने चॉकलेट खा ली तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?
यानी बच्चों को घटाना सिखाते समय चॉकलेट कम्पनी का उपभोगता बनाया जा रहा है| हमारी अपनी शिक्षा पद्धति में यदि घटाना सिखाया जाता तो प्रश्न कुछ इस प्रकार का होता-
पिताजी ने तुम्हे दस रुपये दिए जिसमे से पांच रुपये तुमने किसी गरीब लाचार को दान कर दिए तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?
जब बच्चा बार बार इस प्रकार के सवालों के हल ढूंढेगा तो उसके दिमाग में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर आएगा कि दान क्या होता है, दान क्यों करना चाहिए, दान किसे करना चाहिए आदि आदि? इस प्रकार बच्चे को दान का महत्त्व पता चलेगा| किन्तु चॉकलेट खरीदते समय बच्चा यही सोचेगा कि चॉकलेट कौनसी खरीदूं कैडबरी या नेस्ले?
अर्थ साफ़ है यह शिक्षा पद्धति हमें नागरिक नहीं बना रही बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का उपभोगता बना रही है| और उच्च शिक्षा के द्वारा हमें किसी विदेशी यूनिवर्सिटी का उपभोगता बनाया जा रहा है या किसी वेदेशी कम्पनी का नौकर|
मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में कभी यह नहीं सीखा कि कैसे मै अपने तकनीकी ज्ञान से भारत के कुछ काम आ सकूँ, बल्कि यह सीखा कि कैसे मै किसी Multi National Company में नौकरी पा सकूँ, या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले सकूँ|
तो मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि| यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें शिक्षा देने चल पड़ा| हम भारत वासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास है उसे मैकॉले की शिक्षा की क्या आवश्यकता है? हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो यह कहा था कि दुनिया में सबसे पवित्र नारी है और पुरुष में पवित्रता इसलिए आती है क्यों कि उसने नारी के गर्भ से जन्म लिया है| जो शिक्षा मुझे मेरी माँ से जोडती है उस शिक्षा को छोड़कर मुझे एक ऐसी शिक्षा अपनानी पड़ी जिसे मेरी माँ समझती भी नहीं| हम तो हमारे देश को भी भारत माता कहते हैं| किन्तु हमें उस व्यक्ति की शिक्षा को अपनाना पड़ा जो यह मानता है कि मेरी माँ में आत्मा ही नहीं है| और एक ऐसी शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों?
आज़ादी से पहले यदि यह सब चलता तो हम मानते भी कि ये अंग्रेजों की नीति है, किन्तु आज क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?
आप ध्यान से देखें भारत माता के इस चित्र को जो लेख में सबसे ऊपर है| कितनी सुन्दर है हमारी भारत माँ!!!

मांसाहार क्यों घृणित है???


मित्रों लेख प्रारम्भ करने से पहले मैं आपको अपने विषय में भी कुछ बताना चाहूँगा| मैं एक विद्रोही प्रकृति का व्यक्ति हूँ| कोई व्यक्ति, वस्तु, कार्य या किसी तंत्र में यदि मुझे किसी प्रकार की गड़बड़ नज़र आए तो मैं उसका विरोध करना अवश्य चाहूँगा| चाहे कोई मुझसे सहमत हो या असहमत किन्तु यह मेरा अधिकार है| केवल प्रशंसा ही नहीं अपितु आलोचना करने में मैं अधिक माहिर हूँ|
यह सब मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि विषय ही कुछ ऐसा है जिसमे प्रशंसा एवं आलोचना दोनों का स्थान है|
बात करते हैं यदि शाकाहार- मांसाहार की, जीव दया या जीव हत्या की अथवा इसको बढ़ावा देने वाले या इसका विरोध करने वाले किसी भी समुदाय, जाती, समाज या धर्म की तो यहाँ प्रशंसा व आलोचना साथ-साथ में चल सकती हैं|
इस विषय पर चर्चा करने वाले जीव दया की प्रशंसा कर सकते हैं एवं जीव हत्या की आलोचना भी|
इस विषय पर बहुत से लेख पढ़े| मैं भी अपने लेख में शाकाहार की प्रशंसा कर सकता हूँ किन्तु यहाँ मांसाहार की आलोचना अधिक करूँगा| शायद यह मेरी विद्रोही प्रकृति का ही परिणाम है|
शाकाहार क्यों उचित है इस प्रश्न के लिए शाकाहार की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा जा सकता है और बहुत कुछ कहा भी गया है| जैसे कि शाकाहार सेहत के लिए अधिक अच्छा है, इसमें सभी प्रकार के गुण हैं आदि|
इसके अतिरिक्त कुछ और भी दृष्टिकोण हैं| जैसे पेट भरने के लिए किसी पशु की हत्या करना| मान लीजिये कि यहाँ हत्या गाय की हो रही है| तो गाय की प्रशंसा में भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है जैसे कि गाय हमारी माता है, इसके दूध से हमारा पालन होता है, इसके मूत्र से कई प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं, इसके गोबर को किसान खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं साथ ही इसे हम ईंधन के रूप में भी काम ले सकते हैं| ऐसा कुछ मैंने भी अपने एक लेख में लिखा है| किन्तु अब लगता है कि इसकी हत्या के विरोध में कुछ आलोचना भी करनी ही पड़ेगी| मैं नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति मांसाहार इसलिए छोड़े कि शाकाहार अधिक अच्छा है या वह जीव अधिक लाभकारी है यदि वह जीवित रहे तो| यह भी तो एक प्रकार का लालच ही है| लालच में आकर मांसाहार छोड़ना पूर्णत: सही नहीं है| हिंसा का त्याग व दया ही उद्देश्य होना चाहिए| मांसाहारियों के मन से हिंसा को नष्ट करना है, यही उद्देश्य होना चाहिए| उन्हें इसका आभास कराना है कि यह एक हिंसक एवं घृणित कृत्य है, यह एक पाप है|
इसीलिए मैंने शीर्षक "शाकाहार क्यों उचित है?" के स्थान पर "मांसाहार क्यों घृणित है?" उपयोग में लिया है| शाकाहार की महिमा किसी अन्य लेख में गा दूंगा|
मांसाहार एक घृणित कृत्य है इसके लिए सबसे बड़ा कारण तो यही है कि इसके लिए निर्दोष जीवों की हत्या की जा रही है| किन्तु मांसाहारियों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता यह मैं देख चूका हूँ| क्यों कि वे मांसाहार करते करते दया भावना का त्याग कर चुके हैं| और करेंगे भी क्यों नहीं, इसका कारण भी है|
मित्रों आप जानते ही हैं कि किसी भी जीव को मार कर खा जाने से उसमे व्याप्त कोई भी बीमारी खाने वाले को भी कुछ प्रभावित करती है| बर्ड फ्लू व स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियाँ ऐसे ही तो आई हैं| इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति मांसाहार करता है तो उसमे वह सभी भाव भी आते हैं जो मरते समय उस जीव में आ रहे थे जिसे वह खा रहा है| अब आप जानते ही हैं कि मांसाहार के लिए इन निर्दोष जीवों को किस प्रकार बेदर्दी से मारा जाता है| तो जिस समय वह मर रहा है उस समय वह दर्द से तड़प भी रहा है| उस समय वह दुखी है| उस समय वह क्रोधित भी है कि काश जिस प्रकार यह हत्यारा मुझे मार रहा है इसी प्रकार इसका भी अंत हो, उसका सर्वनाश हो जाए| काश मैं भी इसे इसी प्रकार मार सकता| मैंने इसका क्या बिगाड़ा है जो यह मुझे इस प्रकार बेरहमी से मार रहा है? उस समय जीव पीड़ित भी होता है| उस समय जीव प्रतिशोध की अग्नि में भी जल रहा होता है| उस समय वह जीव भी क्रूर हो जाता है| कहने का अर्थ यह है कि उस समय वे समस्त नकारात्मक भाव उस जीव के मन में आते हैं जिस समय वह दर्दनाक मृत्यु को पा रहा है| और इन सब भावों को भी मांसाहारी व्यक्ति उस जीव के साथ खा जाता है| सुनने में यह थोडा अजीब है किन्तु है एकदम वैज्ञानिक सत्य|
दया भावना मानवता की पहचान है अत: जो व्यक्ति दयालु नहीं है वह मानव ही नहीं है| मांसाहार के घृणित होने का यह सबसे बड़ा कारण है|
दूसरी ओर कई लोग इसे धर्म से जोड़ कर देखते हैं| इसके उत्तर में यदि कोई भी धर्म, जाती या सम्प्रदाय जीव हत्या को जायज ठहराता है तो उसे नष्ट कर देना चाहिए, उसे नष्ट होना ही चाहिए|
किसी भी धर्म में ऐसी कोई आज्ञा नहीं दी गयी है| फिर भी इस्लाम में बकरीद नामक त्यौहार मनाया जाता है| मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं इस्लाम विरोधी नहीं हूँ| किन्तु इन कथित इस्लामियों को खुद ही अपने धर्म के बारे में नहीं पता| कुरआन मैंने भी पढ़ी है| कुछ दिनों पहले एक मुस्लिम फ़कीर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| उनसे बैठकर बात करने में बड़ा आनंद आया| कुछ धर्म पर भी चर्चा हुई| उन्होंने बताया कि इस्लाम में बकरीद नामक कोई भी त्यौहार नहीं है| इस्लाम में ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जिसमे किसी जीव को खुदा के लिए कुर्बान कर दिया जाए| किन्तु फिर भी खुदा के नाम पर सैंकड़ों वर्षों से यह पाप किया जा रहा है|
हिन्दू धर्म में भी कुछ जाति के लोग देवी के सामने बलि चढाते हैं| आजकल ही ऐसा हो रहा है| पिछले शायद कुछ सौ वर्षों से| प्राचीन समय में भारत में ऐसा कुछ नहीं होता था| सनातन धर्म एक महान जीवन पद्धति है| जीभ के स्वाद के लिए अथवा भगवान् को प्रसन्न करने के लिए हमारा सनातन धर्म इस प्रकार के पाप की कभी आज्ञा नहीं देता| और देवी के सामने बलि चढाने का औचित्य ही क्या है? एक तो जीव हत्या कर के वे पहले ही पाप कर रहे हैं, ऊपर से देवी को इसमें पार्टनर बना कर उसे भी बदनाम कर रहे हैं| वे जो अधर्मी हैं, अनाचारी हैं, वे क्या जाने कि धर्म क्या है?
आप मुझे बताएं कि क्या भगवान् यह चाहेगा कि मेरा एक बच्चा मेरे दुसरे बच्चे की हत्या कर दे केवल मुझे खुश करने के लिए?
इसी प्रकार इस्लाम में होता रहा है| बकरीद के दिन मुसलमान बकरे को हलाल करते हैं| जिसके कारण वह बकरा तड़प तड़प कर मरता है, और यह सब होता है धर्म की आड़ लेकर| कौनसा खुदा किसी जीव को इस प्रकार तड़पता देख कर खुश हो जाएगा, मुझे तो आज तक यही समझ नहीं आया|
दरअसल यह सब जीभ के स्वाद के लिए धर्म को बदनाम किया जा रहा है|
इसाइयत में भी यही सब चल रहा है| वहां भी धर्म के नाम पर अनेकों निर्दोष पशु किसी न किसी त्यौहार में मार दिए जाते हैं|
आजकल कुछ मैकॉले मानस पुत्र मैकॉले द्वारा रचित इतिहास (आजकल इसे कांग्रेसी या वामपंथी साहित्य का नाम दिया जा सकता है) पढ़कर कहते हैं कि प्राचीन समय से ब्राह्मण गौमांस का भक्षण कर रहे हैं और कहते हैं कि ऐसा हिन्दू वेदों में लिखा है| मैंने भी वेदों का अध्ययन किया है| मुझे एक बात समझ नहीं आई कि यदि प्राचीन समय से ऐसा हो रहा है तो आज क्यों नहीं होता? मैंने तो कम से कम अपने से बड़ी चार पीढ़ियों को ऐसा करते कभी भी नहीं पाया| गौमांस तो दूर वे तो मुर्गी का अंडा फोड़ देना भी पाप समझते हैं| यदि भारत में ऐसा ही होता था तो गाय को माता की उपाधि इस देश ने कैसे दे दी? उस देश में जहाँ ब्राह्मण को धर्म गुरु की उपाधि दी गयी, वह ब्राह्मण गौमांस कैसे खा सकता है? भगवान् कृष्ण के देश में भला कोई गौमांस खा सकता है? और गौमांस ही क्यों किसी भी जीव का मांस खाना हिन्दू धर्म में वर्जित है|
हम कोई जंगली नहीं हैं| भगवान् ने हमें सोचने की शक्ति दी है| इसी शक्ति के आधार पर हमने सबसे पहले खेती करना सीखा| स्वयं अपना खाना तैयार करके खाना सीखा| प्रकृति इतनी दयालु है कि हमें भोजन उपलब्ध करवा देती है| फिर हम इतने निर्दयी कैसे हुए?
मैंने इस पोस्ट में कुछ ऐसे ही पापी चित्र लगाए हैं जिनमे इन निरीह पशुओं पर होने वाले अत्याचार दिखाए गए हैं| मैं आपसे इस क्रूरतापूर्ण लेख के लिए क्षमा चाहता हूँ| अपनी एक पोस्ट में मैंने एक वीडियो भी लगाया था, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं| यकीन मानिए मैंने इस वीडियो को देखा है| देखते हुए रो पड़ा| मेरी आँखों में आंसू नहीं आते, पता नहीं क्यों? किन्तु दिल अन्दर तक रो सकता है| दुःख भी बहुत होता है| चाहता तो इस वीडियो को बीच में ही बंद कर देता और इसे इस पोस्ट में नहीं लगाता| किन्तु अब लगता है कि यह तो सत्य है| मैं नहीं देखूंगा तो भी होगा| देखूंगा तो कम से कम इसका विरोध करने लायक तो रहूँगा|
किन्तु यह आभास भी हो गया है कि अब कभी ऐसे वीडियो नहीं देख सकता| निर्दोष पर अत्याचार सहन नहीं होता| अब ऐसा लगने लगा है कि मुझे सुख की कामना छोड़ दुःख के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्यों कि यही मुझे गतिशील रखता है|
मेरी इच्छा शक्ति बढती जा रही है| अब मेरे मन में एक इच्छा है कि जिस प्रकार ये पापी इन निर्दोष जीवों को तडपा रहे हैं, इनका भी अंत इसी प्रकार हो| इन पापियों का ऐसा अंत करने में मुझे भी ख़ुशी होगी| यह पुण्य कर्म मैं भी करना चाहूँगा| हाँ मैं मानता हूँ कि इस समय मैं क्रूर हो रहा हूँ, किन्तु ऐसा होना आवश्यक भी है| यदि कोई इस प्रकार मेरे किसी प्रियजन के साथ करता तो भी क्या मैं चुप बैठा रहता?
आज लिखते समय मुझे अत्यधिक पीढ़ा हो रही है| किन्तु विश्वास है कि एक दिन यह सब रोक सकूँगा| मेरे जैसे असंख्य लोग इस कार्य में लगे हैं| उन सबका साथ दूंगा, वे सब मेरा साथ देंगे|


नोट : आने वाले समय में कभी भी भावनाओं में बहकर कुछ नहीं लिखूंगा| ऐसा करना शायद विषय के साथ न्याय नहीं कर पाता| यहाँ आवश्यकता थी अत: इसे अपनाया|

स्विस के लिए खतरा बने बाबा रामदेव, चीन व रूस में भी रामदेव इफेक्ट

मित्रों इन दिनों स्विस सरकार व स्विस बैंक एसोसिएशन के लिए बाबा रामदेव सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं| ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि बाबा रामदेव स्विस सरकार के लिए दुश्मन नंबर १ बन गए हैं|

UBS व स्विस सरकार ने बताया है कि इन दिनों स्विस बैंकों में जमा काले धन में पंद्रह लाख करोड़ डॉलर की भारी कमी आई है| इससे स्विस इकोनोमी को खतरा तो पैदा हुआ ही है, साथ ही आने वाले समय में भी संकट दिख रहा है| वहां की मीडिया में इसे रामदेव इफेक्ट के नाम से दिखाया जा रहा है|

स्विट्ज़रलैंड की चिंता लाज़मी है, क्यों कि अमरीका पहले ही अपना काला धन मंगवा चूका है| यहाँ तक कि पाकिस्तान जैसे देश ने भी मुहीम चला दी है| किन्तु अकेले भारत के काले धन से ही स्विस इकोनोमी चल सकती है| क्योंकि स्विट्ज़रलैंड में सबसे ज्यादा काला धन भारत का ही है| और बाबा रामदेव ने इस काले धन को पुन: भारत में लाने के लिए जन आन्दोलन खड़ा कर दिया है| स्विस सरकार की चिंता यह है कि यह आन्दोलन निरंतर मज़बूत होता जा रहा है|

इतना क्या कम था कि अब चीन व रूस ने भी कालेधन को वापस लाने के लिए मुहीम छेड़ दी है| चीन व रूस भी स्विस बैंकों में काला धन जमा करने वाले देशों की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं| अब ऐसे में एशिया के इन तीन बड़े देशों द्वारा जमा किया काला धन यदि स्विस बैंकों के हाथ से निकल गया तो स्विट्ज़रलैंड के बिकने की नौबत आ सकती है|

और यह सब संभव होता दिख रहा है बाबा रामदेव के अभियान से|

पिछले कई दिनों से रूस में लेनिन स्क्वायर पर रूसी लोग सामाजिक कार्यकर्ता ब्लादिमीर इलिनोइच के नेतृत्व में काले धन के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं| उनके इस प्रदर्शन से तंग आकर रूसी सरकार ने दो माह के भीतर काला धन वापस लाने का लिखित आश्वासन दिया है| ब्लादिमीर इलिनोइच ने बाबा रामदेव को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर यह आन्दोलन शुरू किया है|

उधर चीन की सरकार भी चिंतित है| दरअसल मिस्र व लीबिया में हुई क्रान्ति के चलते चीनी सरकार को यह भय सता रहा है कि यदि देश का जनमत जाग जाए तो तानाशाहों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है| अत: चीनी सरकार ने क़ानून बना कर स्विस सरकार से काले धन के सन्दर्भ में पूरा ब्यौरा माँगा है| साथ ही भ्रष्टाचारियों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान भी रखा है|

दुनिया के तानाशाह देश भी अब जनता से घबरा रहे हैं| किन्तु यहाँ भारत में लोकतंत्र होते हुए भी सरकार न केवल भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर रही है अपितु इसके विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों पर बर्बर अत्याचार भी कर रही है| 

और यह सब तब तक चलता रहेगा जब तक इस देश के बुद्धूजीवी अपना अपना बुद्धू कर्म करते रहेंगे| इन्हें अक्ल तब आएगी जब यह कांग्रेस इनके घरों में घुस कर इन्हें लूटना व पीटना शुरू करेगी| यही सब बुद्धू कर्म चलता रहा तो वह समय भी जल्दी ही आने वाला है| अभी NAC ने Communal Violence Bill संसद में पारित करवाने के लिए पेश कर दिया है| इन भ्रष्टों से भरी संसद में यह पारित भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं| इस विधेयक के बहाने ये हमें हिंसा का शिकार भी बनाएंगे, हमारी माँ-बहनों का बलात्कार भी करेंगे व हमारे खून पसीने की कमाई भी लूटेंगे|

परन्तु सरकार अपने इन घोर षड्यंत्रों में सफल नहीं हो सकेगी क्योंकि अब कांग्रेस को भी कहीं न कहीं देश की अवाम के जागने से चिंता हो ही रही है| कहीं न कहीं उसे भी Common Man का भय सता रहा है| अरब देशों में हुई क्रान्ति इस बात का सबूत है कि इंटरनेट के माध्यम से भी एक बहुत बड़ा व ताकतवर जनांदोलन खड़ा किया जा सकता है| भारत में भी इन दिनों फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग व अन्य वेब पोर्टल पर बाबा रामदेव के सुर से सुर मिलते दिखाई दे रहे हैं| देश का एक बहुत बड़ा पढ़ा लिखा व ताकतवर वर्ग इन दिनों सरकार के विरुद्ध एक अभियान चला रहा है| यह सब देखकर हम आश्वस्त हैं कि सरकार अपने काले षड्यंत्रों में कभी सफल नहीं हो सकेगी|

नोट : चीन और रूस से पहले ताइवान में भी बाबा रामदेव से प्रेरित होकर ऐसा ही जनांदोलन खड़ा हो चूका है| ये तो वे देश हैं जो मेरी जानकारी में हैं, इनके अतरिक्त और भी कई देश हो सकते हैं|

अंत में जाते हुए एक सरकारी पहल - बाबा रामदेव ने Currency Recall का भी एक मुद्दा उठाया है, जिसके अंतर्गत बड़े नोट (पांच सौ व हज़ार के) बंद होने चाहिए| सरकार ने चवन्नी से शुरुआत कर दी है| आज शायद बाज़ार में चवन्नी से कोई चीज़ खरीद पाना असंभव है, यह असम्भावना इसी कांग्रेस सरकार ने इस देश को महंगाई के रूप में दी है|